सोमवती अमावस्या एवं वट सावित्री व्रत एक साथ: बन रहा दुर्लभ और शुभ संयोग, जानें तिथि, पूजा विधि और महत्व
हिंदू धर्म में व्रत-उपवास और पर्व-त्योहारों का विशेष महत्व है। इनमें भी सोमवती अमावस्या और वट सावित्री व्रत का आध्यात्मिक और पारिवारिक दृष्टिकोण से अत्यंत विशिष्ट स्थान है। वर्ष 2025 में यह दोनों पर्व एक ही दिन, यानी 25 मई 2025 को पड़ रहे हैं, जो एक अत्यंत शुभ और दुर्लभ संयोग है। यह संयोग व्रत रखने वाली महिलाओं और श्रद्धालुओं के लिए विशेष रूप से फलदायक माना जा रहा है।
सोमवती अमावस्या का धार्मिक महत्व
जब अमावस्या तिथि सोमवार को आती है, तो उसे सोमवती अमावस्या कहा जाता है। यह दिन पितृ तर्पण, तीर्थ स्नान, और दान-पुण्य के लिए अत्यंत शुभ माना गया है। स्कंद पुराण और महाभारत में इसका विशेष उल्लेख मिलता है कि जो व्यक्ति इस दिन नियमपूर्वक व्रत रखता है और पितरों के लिए तर्पण करता है, उसे स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है। साथ ही, इस दिन पीपल और वट वृक्ष की पूजा करने से पूर्वजों की आत्मा को शांति मिलती है और वंशवृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
वट सावित्री व्रत का महत्व
वट सावित्री व्रत सुहागन महिलाओं द्वारा अपने पति की लंबी उम्र, उत्तम स्वास्थ्य और सुखद दांपत्य जीवन के लिए किया जाता है। यह व्रत वट वृक्ष (बड़ का पेड़) के नीचे बैठकर किया जाता है और इसमें सावित्री-सत्यवान की कथा का श्रवण अनिवार्य होता है। पौराणिक कथा के अनुसार, सावित्री ने अपने तप, श्रद्धा और विवेक से यमराज को प्रसन्न कर अपने मृत पति को पुनः जीवित करवा लिया था। अतः यह व्रत स्त्रियों के लिए आदर्श पतिव्रता धर्म और संकल्प शक्ति का प्रतीक बन चुका है।
2025 में दुर्लभ संयोग
इस वर्ष 25 मई 2025 को सोमवती अमावस्या और वट सावित्री व्रत एक साथ पड़ रहे हैं। यह संयोग वर्षों में एक बार ही आता है और इस कारण इसका महत्व और भी बढ़ गया है। यह दिन धार्मिक साधना, व्रत, स्नान, दान और पितृ कार्यों के लिए अत्यंत उत्तम माना जा रहा है।
शुभ मुहूर्त
- अमावस्या तिथि प्रारंभ: 24 मई 2025 को शाम 5:32 बजे
- अमावस्या तिथि समाप्त: 25 मई 2025 को शाम 7:10 बजे
- वट सावित्री पूजा का श्रेष्ठ समय: 25 मई को प्रातः 6:00 बजे से 10:30 बजे तक
- पितृ तर्पण एवं स्नान-दान: सूर्योदय से पूर्वाह्न 11:00 बजे तक
पूजा विधि (संक्षेप में)
- सूर्योदय से पहले स्नान करें और व्रत का संकल्प लें।
- वट वृक्ष की जड़ में जल चढ़ाएं और कच्चा सूत लपेटें।
- कुमकुम, अक्षत, फूल आदि से पूजन करें।
- सावित्री-सत्यवान की कथा पढ़ें या सुनें।
- ब्राह्मणों को भोजन और वस्त्र दान करें।
सोमवती अमावस्या एवं वट सावित्री व्रत दान
निष्कर्ष
यह दिव्य संयोग जीवन में शुभता, समृद्धि और सौभाग्य लेकर आता है। जो भी श्रद्धा भाव से व्रत करता है, उसे पितृ दोष से मुक्ति, वैवाहिक सुख, संतान सुख और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। इस विशेष अवसर को पूर्ण श्रद्धा और विधिपूर्वक अवश्य मनाएं।सोमवती अमावस्या एवं वट सावित्री व्रत
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